कविता संग्रह >> एक दुनिया है असंख्य एक दुनिया है असंख्यसुन्दर चन्द ठाकुर
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युवा कवि सुन्दर चन्द ठाकुर की कवितायें...
एक दुनिया है असंख्य
–मंगलेश डबराल
वृद्ध माँ की नींद और डेढ़ बरस की बेटी के भविष्य से लेकर ग्राहकों के लिए मुर्गे काटते आठ बरस के लड़के और बग़दाद के बमों के धमाकों में फँसी जुड़वा बहनों तक फैला युवा कवि सुन्दर चन्द ठाकुर की कविता का फलक क़ाफी व्यापक है। उनकी कविता अतीत और वर्तमान के चौराहों को खुले और हवादार घरों की तरह देखती है और ख़ुद अपनी ही संवेदना के रूपक की तरह लगती है, जहाँ से कई रास्ते फूटते हैं; और जीवन जैसा भी हो, अच्छा या बुरा, अपने विविध और विस्मयकारी रूपों में गतिशील होता है। अपने पिछले संग्रह ‘किसी रंग की छाया’ (2001) से एक विशिष्ट पहचान बना चुके कवि का यह नया संग्रह उनकी काव्यात्मक संवेदना में निरन्तर आ रही विकासशीलता, परिपक्वता और बेचैनी की ओर एक सार्थक संकेत करता है। उनकी पिछली कविताओं में जो आवेग और गहरा सकारात्मक रूमान था, वह अब एक बौद्धिक साक्षात्कार की शक्ल ले चुका है और उसके सरोकार मुक्तिबोध शैली के ‘ज्ञानात्मक संवेदन’ तक विस्तृत हुए हैं। यह आकस्मिक नहीं कि इस संग्रह में मुक्तिबोध जैसी बेचैनी को प्रतिध्वनित करती एक लम्बी कविता भी शामिल है, जिसमें कवि ने मुक्तिबोध के ब्रह्मराक्षस को अपने समकाल के सन्दर्भों में नये सिरे से प्रासंगिक बनाया है। संग्रह की एक और कविता ‘मुक्तिबोधों का समय नहीं यह’ भी इक्कीसवीं सदी के भारतीय समाज में कविता लिखने की विडम्बनाओं से रूबरू होती है। हमारे उत्तर-आधुनिक विखंडित कहे जाने वाले समय में जब लम्बी कविता एक दुष्कर विधा बन गयी है लेकिन सुन्दर इस धारणा को तोड़ने का जोख़िम उठाते हैं और–लम्बे और छोटे– दोनों तरह के शिल्पों में नये आयामों तक चले जाते हैं।
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